Kaal Bhairav Ashtakam का आध्यात्मिक महत्व

24 December 2025 | vedic-culture

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भगवान शिव के स्तुति के लिए Kaal Bhairav Ashtakam एक अत्यंत शक्तिशाली वैदिक स्तोत्र है। भगवान शिव के उग्र स्वरूप काल भैरव की स्तुति में रचित एक ‘काल’ समय और मृत्यु का प्रतीक है, जबकि ‘भैरव’ भय का नाश करने वाले को दर्शाता है। यह अष्टक आठ श्लोकों के माध्यम से काशी के कोतवाल काल भैरव की महिमा, शक्ति और करुणा का वर्णन करता है। इसके पाठ से व्यक्ति भय, मोह, पाप और मानसिक कष्टों से मुक्त होता है। इसके साधक को कर्मबंधन से ऊपर उठाकर आध्यात्मिक ज्ञान की ओर ले जाता है। यह स्तोत्र न केवल जीवन की बाधाओं को दूर करता है, बल्कि भोग और मोक्ष-दोनों की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।


Kaal Bhairav Ashtakam के लाभ और प्रभाव


Kaal Bhairav Ashtakam का नियमित पाठ कलियुग की नकारात्मक शक्तियों, प्रेत बाधाओं और तांत्रिक दोषों से रक्षा करता है। यह राहु-केतु के अशुभ प्रभावों को शांत करने में सहायक माना जाता है। स्तोत्र में काल भैरव को नीलकंठ, त्रिलोचन, श्यामकाय, देवताओं और योगियों द्वारा पूजित तथा अष्टसिद्धियों के दाता के रूप में वर्णित किया गया है। वे धर्म के रक्षक और कर्म-पाश से मुक्त करने वाले हैं। सुबह स्नान के बाद श्रद्धा और भाव के साथ इसका पाठ करने से मन शांत होता है और चेतना शुद्ध होती है। इस मंत्र के नियमित जाप व्यक्ति को आंतरिक बल, निर्भयता और परम आनंद की अनुभूति कराता है।


Kaal Bhairav Ashtakam: भावार्थ और आध्यात्मिक महत्व


Kaal Bhairav Ashtakam भगवान शिव के उग्र रूप श्री काल भैरव की स्तुति है। काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। वे समय, मृत्यु और कर्म के अधिपति हैं। यह स्तोत्र भय, पाप, बाधा और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है तथा साधक को आत्मिक बल प्रदान करता है।


1. देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ १॥


श्लोक 1 में काल भैरव के चरणकमलों का वर्णन है, जिनकी सेवा स्वयं देवता करते हैं। वे सर्प को यज्ञसूत्र की तरह धारण करते हैं और चंद्रमा को मस्तक पर रखते हैं। नारद आदि योगी जिनकी वंदना करते हैं, वे दिगंबर स्वरूप में काशी के अधिनाथ हैं। यह श्लोक उनके वैराग्य और करुणा को दर्शाता है।


2. भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलवर्णशोभिकैवल्यसाधकं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ २॥


श्लोक 2 में कहा गया है कि काल भैरव की आभा करोड़ों सूर्यों के समान है। वे संसार रूपी समुद्र से पार लगाने वाले हैं। भस्म से विभूषित उनका नीलवर्ण शरीर शांति और वैराग्य का प्रतीक है। वे मोक्ष की ओर ले जाने वाले परम साधक हैं।


3. शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ३॥


श्लोक 3 में काल भैरव को शूल, डमरू, पाश और दंड धारण किए हुए बताया गया है। वे आदि देव, अक्षय और रोगरहित हैं। उनका भयंकर पराक्रम और तांडव प्रिय स्वरूप यह दर्शाता है कि वे अज्ञान और अधर्म का पूर्ण नाश करते हैं।


4. भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहम्
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मणिप्रवेकमुक्तिकण्ठमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥


श्लोक 4 में कहा गया है कि काल भैरव भोग और मोक्ष दोनों देने वाले हैं। वे भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं और संपूर्ण लोकों का पालन करते हैं। उनके गले में झंकार करती मणियों की माला चेतना और जागरूकता का प्रतीक है।


5. धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदानभास्करम्।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ५॥


श्लोक 5 में काल भैरव को धर्म की सेतु (रक्षा करने वाला) कहा गया है। वे अधर्म का नाश करते हैं और कर्मबंधन से मुक्ति देते हैं। उनका तेजस्वी स्वरूप न्याय, सत्य और संतुलन को दर्शाता है।


6. रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम्।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ६॥


श्लोक 6 में उनके चरणों की महिमा बताई गई है, जो रत्न जटित पादुकाओं से सुशोभित हैं। वे अद्वितीय, निरंजन और इष्टदेव हैं। काल भैरव मृत्यु के गर्व को नष्ट करते हैं और भय से मुक्त करते हैं।


7. अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ७॥


श्लोक 7 में उनके अट्टहास (भयंकर हास्य) का वर्णन है, जिससे सृष्टि के भ्रम नष्ट हो जाते हैं। उनकी एक दृष्टि से पापों का नाश होता है। कपालों की माला धारण करने वाले काल भैरव अष्ट सिद्धियाँ प्रदान करते हैं।


8. भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधनं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ८॥


श्लोक 8 में उन्हें भूतगणों का नायक, विशाल कीर्ति देने वाला और काशीवासियों के पाप-पुण्य को शुद्ध करने वाला कहा गया है। वे प्राचीन, नीति के ज्ञाता और सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं।


कालभैरव अष्टकम किसने लिखा?


यह प्रसिद्ध स्तोत्र कालभैरव अष्टकम महान अद्वैत वेदांताचार्य आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। आदि शंकराचार्य भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के ऐसे महान संत थे, जिन्होंने पूरे भारत में भ्रमण कर अद्वैत वेदांत का प्रचार-प्रसार किया। वे जहाँ भी गए, वहाँ शास्त्रार्थ, प्रवचन और आध्यात्मिक चर्चाओं के माध्यम से लोगों को आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।


उनकी विद्वता, तेजस्विता और प्रभाव इतना व्यापक था कि वे भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक इतिहास में एक अमिट प्रतीक बन गए। आदि शंकराचार्य ने दशनामी संप्रदाय की स्थापना भी की, जो आज भी दस अखाड़ों या विशिष्ट सन्यासी परंपराओं के रूप में विद्यमान है।

मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने 250 से अधिक ग्रंथों की रचना की, जिनमें दर्शन, उपनिषद, स्तोत्र और भाष्य शामिल हैं। कालभैरव अष्टकम भी उन्हीं की गहन शिव-भक्ति और तांत्रिक-वैदिक ज्ञान का सुंदर उदाहरण है, जिसमें काशी के अधिपति भगवान कालभैरव की महिमा का वर्णन किया गया है।


कालभैरव अष्टकम के लाभ:


कालभैरव अष्टकम का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन में भय, नकारात्मक ऊर्जा और मानसिक अस्थिरता को दूर करता है। यह स्तोत्र भगवान शिव के उग्र रूप कालभैरव को समर्पित है, जो समय और कर्म के अधिपति माने जाते हैं। इसके पाठ से व्यक्ति को आंतरिक शक्ति, आत्मविश्वास और सुरक्षा का अनुभव होता है। जो लोग अनजाने भय, बाधाओं या शत्रु बाधा से परेशान रहते हैं, उनके लिए यह अष्टकम अत्यंत प्रभावी माना गया है। विशेष रूप से राहु-केतु, शनि दोष या अचानक आने वाली समस्याओं में इसके लाभ देखे जाते हैं।


मुख्य लाभ:


  • भय, चिंता और नकारात्मक विचारों से मुक्ति
  • शत्रु बाधा और तंत्र-बाधा से रक्षा
  • कर्मों के दुष्प्रभाव में कमी
  • साहस, निर्णय क्षमता और आत्मबल में वृद्धि
  • आध्यात्मिक उन्नति और शिव कृपा की प्राप्ति नियमित श्रद्धा से किया गया पाठ जीवन में स्थिरता और सुरक्षा का भाव लाता है।


कालभैरव अष्टकम की पूजा विधि


कालभैरव अष्टकम की पूजा विधि सरल होते हुए भी अत्यंत प्रभावशाली है। इसे प्रातः ब्रह्म मुहूर्त या रात्रि के समय, विशेषकर मंगलवार या शनिवार को करना श्रेष्ठ माना गया है। पूजा से पूर्व स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शांत मन से उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। भगवान कालभैरव की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं और धूप-अगरबत्ती अर्पित करें।


पूजा विधि के मुख्य चरण:


  • काले तिल के तेल या सरसों के तेल का दीपक जलाएं
  • भगवान को काले तिल, काले फूल या नीले पुष्प अर्पित करें
  • “ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का जप करें
  • इसके बाद कालभैरव अष्टकम का श्रद्धा से पाठ करें
  • अंत में क्षमा प्रार्थना और शांति की कामना करें


नियमित पूजा से जीवन में भय रहित और अनुशासित ऊर्जा विकसित होती है। इसलिए Kaal Bhairav Ashtakam मंत्र को हमेशा पढ़ना चाहिए। इससे आपके अंदर बहुत ज्यादा शक्ति आती है।


FAQs से पहले, संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए तैयार की गई हमारी “What Is Dasha in Astrology?” मार्गदर्शिका पढ़ें।


FAQs: (पूछे जाने वाले प्रश्न)


प्रश्न 1: Kaal Bhairav Ashtakam क्या है?


Kaal Bhairav Ashtakam भगवान कालभैरव की स्तुति में रचित एक शक्तिशाली स्तोत्र है। इसमें कालभैरव के उग्र, रक्षक और कृपालु स्वरूप का वर्णन किया गया है। इस अष्टक का पाठ भय, नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं से रक्षा के लिए किया जाता है।


प्रश्न 2: Kaal Bhairav Ashtakam का पाठ करने से क्या लाभ होते हैं?


Kaal Bhairav Ashtakam का नियमित पाठ करने से मानसिक भय दूर होता है, शत्रु बाधाएँ समाप्त होती हैं और साधक को आत्मबल प्राप्त होता है। यह कर्मों के बंधन को कमजोर कर जीवन में स्थिरता लाने में सहायक माना जाता है।


प्रश्न 3: इस अष्टक का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?


इस स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल या रात्रि में, विशेष रूप से शनिवार या अष्टमी तिथि को करना शुभ माना जाता है। शांत मन से दीपक जलाकर पाठ करना अधिक फलदायी होता है।


प्रश्न 4: क्या गृहस्थ व्यक्ति भी इसका पाठ कर सकते हैं?


हाँ, गृहस्थ व्यक्ति भी श्रद्धा और नियम के साथ इसका पाठ कर सकते हैं। इसके लिए किसी विशेष दीक्षा की आवश्यकता नहीं होती, केवल शुद्ध मन और आस्था जरूरी है।


प्रश्न 5: इस स्तोत्र का प्रभाव कितने समय में दिखाई देता है?


इसका प्रभाव व्यक्ति की श्रद्धा, नियमितता और कर्मों पर निर्भर करता है। कई लोगों को कुछ ही दिनों में मानसिक शांति और सकारात्मक बदलाव अनुभव होने लगते हैं।


By Manjeet Kumar
Vedic Meet Content Team

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