Teachings of Bhagavad Gita | 18 teaching of Geeta by shri Krishna
3 July 2024 | vedic-learnings
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Know about the teachings of Bhagavad Geeta
If I tell you about a book which can help you find all answers to your problems , then will you believe it? Well surprisingly , there is one ancient text which can help you find ways for living a good life. That book is Bhagavad Geeta. A book which is about the talk between God Krishna and his friend Arjun . He through his sermons helped Arjun knowing the dharma and values of life. In this article, you will learn about many teachings of bhagavad gita that will improve your life.
Some of the powerful teachings from Bhagavad Geeta :
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23) :
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
Meaning: Our body’s whole system runs through a source of energy and that energy is known as the soul. Bodies are mortal , while the soul is immortal . Soul can’t be harmed , nor burnt , but like energy is transferred from one body to another. If you believe in establishing dharma , then Hey Arjuna , you just kill the body . The soul is part of energy that transfers from one body to another.
अर्थ: हमारे शरीर का पूरा तंत्र एक ऊर्जा स्रोत से चलता है और उस ऊर्जा को आत्मा के नाम से जाना जाता है। शरीर नश्वर है, जबकि आत्मा अमर है। आत्मा को न तो नुकसान पहुंचाया जा सकता है, न ही जलाया जा सकता है, लेकिन जैसे ऊर्जा एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित होती है। यदि तुम धर्म की स्थापना के रास्ते में हो, तो हे अर्जुन, तुम सिर्फ शरीर को मार रहे हो, कोई भी तुम्हारा रिश्तेदार नहीं है, यह आत्मा है जो एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित हो जाएगी। शरीर की चिंता मत करो, बस अपना कर्तव्य निभाओ।
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
Meaning : You might be aware of the phrase “ The Law of Karma”. It states that whatever karma you perform , you will get the same result. Krishna Ji says in his sermon that one who is performing his duties without any desire for fruits is the correct individual in this world. When somebody gets attach to the fruits of the work, then he starts leading a life of depression.
अर्थ: आप “कर्म का नियम” वाक्यांश से परिचित होंगे। इसमें कहा गया है कि आप जैसा कर्म करेंगे, आपको वैसा ही फल मिलेगा। कृष्ण जी अपने कर्म संबंधी उपदेशों में केवल यह कहना चाहते हैं कि व्यक्ति को अपने कर्म के फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, क्योंकि इससे आपको अपने कर्तव्यों को कुशलतापूर्वक पूरा करने में मदद मिलती है। जब आप अपने काम के फल के बारे में सोचते हैं तो आप आशा से जुड़ जाते हैं और आशा ही नकारात्मकता की शुरुआत है। परिणामों से दूर रहें, बस अपने कर्तव्यों का कुशलतापूर्वक पालन करें।
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
Meaning: The main cause of desire is the attachment with the materials in the world. Attachment is the mother of hope . When hope grows, it pushes individuals towards miseries.
अर्थ: संसार में सभी इच्छाओं का कारण आसक्ति है और जब हम किसी चीज से जुड़ जाते हैं तो वह आशा को जन्म देती है। जब हम प्यार में आशा करते हैं, परिणाम की आशा करते हैं और भी बहुत कुछ तो हम इतने आसक्त हो जाते हैं कि दूसरों के अनुसार जीना शुरू कर देते हैं। जब हमारी उम्मीदें टूट जाती हैं, तो हम अंधकार की ओर बढ़ जाते हैं और निराश, निराश आदि हो जाते हैं। जब कोई व्यक्ति भावनाओं से प्रभावित नहीं होता है, तो हम अपने कर्तव्यों को अधिक प्रभावी ढंग से करने में सक्षम होते हैं।
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
Meaning :The emotions like anger , greed , lust etc. Being part of delusion builds a curtain around the eyes of human beings. builds a curtain around the eyes of human beings. Lord Krishna says to Arjun that stay away from emotions, as attaching with emotions gives birth to silly things. A person who is under the influence of emotion becomes greedy , lusty and many other emotions. Once you focus on your duties, then your decisions will fall in the right place.
अर्थ: क्रोध, लोभ, वासना आदि भावनाएँ भ्रम का हिस्सा बनकर मनुष्य की आँखों पर पर्दा डाल देती हैं। इंसान की आंखों पर पर्दा डाल देता है. भगवान कृष्ण कहते हैं कि जब आप भावनाओं से जुड़ जाते हैं और खुद को ज्ञान से दूर करना शुरू कर देते हैं तो आप अपने जीवन में मूर्खतापूर्ण काम करना शुरू कर देते हैं। आप क्रोधी, लालची हो जाते हैं और जल्द ही व्यक्तिगत और व्यावसायिक रूप से गिरावट शुरू कर देते हैं। इसलिए जरूरी है कि अपने दिमाग को नियंत्रण में रखें और वास्तविकताओं पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें, ताकि सभी निर्णय सही जगह पर हों।
(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
Meaning : We always try to become like our mentor and so one should choose a mentor carefully. Never choose a wrong mentor. Choosing a wrong mentor can push you towards the wrong path. Be wise in choosing your mentor. Always choose a circle full of knowledgeable , wisdom people and neglect any circle of evil activities. Sometimes knowledge can be taken from the people.
अर्थ: हम सदैव अपने गुरु जैसा बनने का प्रयास करते हैं इसलिए गुरु का चयन सोच-समझकर करना चाहिए। जब हम गलत गुरु चुनते हैं, तो हम अपने जीवन में गिरावट देखते हैं और जब हम सही गुरु चुनते हैं, तो सब कुछ सकारात्मक हो जाता है। हमेशा ज्ञानी, बुद्धिमान लोगों से भरा एक समूह चुनें और बुरी गतिविधियों वाले किसी भी समूह की उपेक्षा करें। कभी-कभी लोगों से ज्ञान लिया जा सकता है।
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
Meaning : Lord Krishna Ji states that whenever unrighteousness (adharma) spreads in this world , i would incarnate and destroy the unrighteousness(adharma) and reestablish Dharma ( righteousness). Lord Krishna has shown his real form as Lord Vishnu and then stated this statement.
अर्थ: भगवान कृष्ण जी कहते हैं कि जब भी इस संसार में अधर्म फैलेगा, मैं अवतार लूंगा और अधर्म को नष्ट करके धर्म की पुनः स्थापना करूंगा। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवान विष्णु के रूप में अपना वास्तविक रूप दिखाया और फिर यह कथन कहा।
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्। तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
Meaning: It’s a duty of a warrior to make sacrifices if needed , because martyrdom is like a garland for a warrior. If you get martyred during the war, then you get a respected farewell with people following in your footsteps . If you win the battle then you would become an inspiration for the youths.
अर्थ: आवश्यकता पड़ने पर बलिदान देना एक योद्धा का कर्तव्य है, क्योंकि शहादत एक योद्धा के लिए माला के समान होती है। यदि आप युद्ध के दौरान शहीद हो जाते हैं तो लोग आपके नक्शेकदम पर चलते हुए आपको सम्मानजनक विदाई देते हैं। यदि आप जंग जीत गए तो युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनेंगे।
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
Meaning : Lord Krishna says that he will again take birth like he did it in previous eras. He will take birth to restore dharma to protect the good people .
अर्थ: भगवान कृष्ण ने कहा है कि मैंने हर युग में जन्म लिया है और जब भी अधर्म धर्म पर हावी हो जाएगा और दिव्य लोगों की रक्षा करूंगा, तब भी मैं ऐसा करता रहूंगा।
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
Meaning: Hey Arjun, peoples who believes on God and performs his duties well, is always happy.
अर्थ: हे अर्जुन, जो मनुष्य ईश्वर पर पूर्ण विश्वास रखता है और ज्ञान प्राप्त कर कल्याण करता रहता है, वह सदैव सुखी रहता है और शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
(षष्ठ अध्याय, श्लोक 5)
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:
Meaning: Always stand with truth and do your best work . Stay away from the lies and always remember God every time. Never put yourself in degradation. A human being is itself his friend and enemy.
अर्थ: हमेशा सच्चाई के साथ खड़े रहें और अपना सर्वश्रेष्ठ कार्य करें। झूठ से दूर रहें और हर वक्त भगवान का स्मरण करें। अपने आप को कभी भी पतन में मत डालो। मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु होता है।
(नवम अध्याय, श्लोक 26)
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥
Meaning: Devotion should be there when you worship God . If anyone offers a simple flower or any other food , I will accept the offering if it is offered with full devotion. The offering should not be show off . A true bhakti can bind me.
अर्थ: जब आप भगवान की पूजा करते हैं तो उसमें भक्ति होनी चाहिए। यदि कोई साधारण फूल या कोई अन्य भोजन अर्पित करता है, तो मैं उसे पूरी श्रद्धा से अर्पित करने पर स्वीकार कर लूंगा। प्रसाद दिखावा नहीं होना चाहिए। सच्ची भक्ति मुझे बांध सकती है।
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 15 )
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ | समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ||
Meaning : Hey Arjun , the person who is unmoved by the emotions and treats joy, sorrow equally , is a righteous person. The person who has qualities of controlling the emotions , will definitely attain salvation one day.
अर्थ: हे अर्जुन, जो व्यक्ति भावनाओं से रहित होकर सुख और दुख को समान भाव से देखता है, वही धर्मात्मा है। जिस व्यक्ति में भावनाओं पर नियंत्रण रखने का गुण होता है, उसे एक दिन मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है।
(अष्टादश अध्याय, श्लोक 66)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
Meaning: Abandoning all religions, come to my shelter and I will do good to you. Whoever comes to my shelter , will get solace soon.
अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर मेरी शरण में आ जाओ मैं तुम्हारा कल्याण करूंगा। जो कोई मेरी शरण में आएगा, उसे शीघ्र ही सांत्वना मिलेगी।
(अष्टादश अध्याय श्लोक 49)
असक्तबुद्धि: सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृह: | नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां सन्न्यासेनाधिगच्छति ||
Meaning : Hey Arjun , who is good at self-control and abstains from any sorts of materialistic things , and is free from fruits of the work , then he is worthy of salvation and will go to vaikuntha Dham .
अर्थ: हे अर्जुन, जो आत्म-नियंत्रण में अच्छा है और किसी भी प्रकार की भौतिकवादी चीजों से दूर रहता है, और कर्म के फल से मुक्त है, तो वह मोक्ष के योग्य है और वैकुंठ धाम को जाएगा।
(अष्टादश अध्याय श्लोक 49)
असक्तबुद्धि: सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृह: | नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां सन्न्यासेनाधिगच्छति ||
Meaning: Hey Arjun , who is good at self control and abstains from any sorts of materialistic things , and is free from fruits of the work , then he is worthy of salvation and will go to vaikuntha. He is a supreme person.
अर्थ: हे अर्जुन, जो आत्मसंयम में कुशल है और किसी भी प्रकार की भौतिकवादी चीजों से दूर रहता है, और कर्म के फल से मुक्त है, वह मोक्ष के योग्य है और वैकुंठ में जाएगा। वह एक सर्वोच्च व्यक्ति हैं.
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 27 )
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च | तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ||
Meaning: There are two truths of life , one is birth and another is death . If one gets attached with death and birth , then he moves towards the path of destruction . There is only one thing you can do , is to control your work and perform your duties well.
अर्थ: जीवन के दो सत्य हैं, एक जन्म और दूसरा मृत्यु। यदि कोई व्यक्ति मृत्यु और जन्म से जुड़ जाता है तो वह विनाश के मार्ग की ओर बढ़ जाता है। केवल एक ही चीज़ है जो आप कर सकते हैं, वह है अपने काम पर नियंत्रण रखना और अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाना।
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 37 )
यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन | ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ||
Meaning: When there is too much ignition in the engine , the entire vehicle can get burned. When you become highly knowledgeable , then the light of knowledge can burn every materialistic thing in the world.
अर्थ: जब इंजन में बहुत अधिक ज्वलन हो तो पूरी गाड़ी जल सकती है। जब आप अत्यधिक ज्ञानी बन जाते हैं, तो ज्ञान की रोशनी दुनिया की हर भौतिक वस्तु को जला सकती है।
(षष्ठ अध्याय, श्लोक 6 )
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित: |अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् ||
Meaning: Mind is like an unwind horse , if not controlled becomes directionless and wanders here and there. A sensible man should have power to control the mind , as controlling the mind gives enough power to achieve their goals.
अर्थ: मन एक ऐसे घोड़े की तरह है, जिसे नियंत्रित न किया जाए तो वह दिशाहीन हो जाता है और इधर-उधर भटकता रहता है। एक समझदार व्यक्ति के पास मन को नियंत्रित करने की शक्ति होनी चाहिए, क्योंकि मन को नियंत्रित करने से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त शक्ति मिलती है।
These priceless Bhagvad Geeta teachings can help you know how to live a life and face the problems of life . If you really want to tackle the issues of life , then start reading Bhagavad Geeta from today.
FAQs
1.) Which shlokas of Geeta tells about the souls?
“नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥”
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
This sermon is about the souls. The souls can’t be destroyed but are a source of energy which transfers from one body to another.
2.) Who all heard Bhagvad Geeta during Mahabharat?
Along with Arjun , God Hanuman , Sanjaya and God Barbarik were the listeners of Bhagvad Geeta.
3.) What does Krishna ji say about controlling the mind?
“बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित: |अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् || “
(षष्ठ अध्याय, श्लोक 6 )
Mind is like an unwind horse which runs directionless and wanders without purpose. When a sensible man is able to control his mind, then in return the mind provides enough power to him to achieve any goals
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